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Image by Ishan @seefromthesky

Comparing and Contrasting the following Governments' electoral policies and/or pre-election decision

फ्रीबीज कल्चर और कल्याणकारी योजना



Source of Image: plutusias


हाल ही के वर्षों में, भारत में राज्य सरकारों द्वारा चुनावों से पहले लोकलुभावन जैसी कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा करने की प्रवृत्ति दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। अक्सर हम अपने आसपास या टेलीविजन अथवा अखबारों में पढ़ते हैं कि चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दल विभिन्न चीजों का मुक्त बटवारा करने का वादा करते हैं जैसे कि मुफ्त बिजली, पानी, मुफ्त लैपटॉप, साइकिल तथा टेबलेट, और तो और किसानों के ऋण माफ करने का वादा आदि प्रमुख है। इसे फ्रीबी कल्चर अर्थात रेवड़ी कल्चर भी कहा जाता है।

ऐसे लोकलुभावन वादों के कारण राज्य सरकार के राजस्व पर भारी दबाव पड़ता है अर्थात सरकार के राजस्व में कमी होती है। कुछ लोगों द्वारा आलोचना की गई है कि यह वह खरीदने के लिए बनाई गई एक वोट बैंक की राजनीति से ज्यादा कुछ और नहीं है। क्योंकि फ्रीबीज के कारण अधिकांश राज्य की वित्तीय स्थिति कमजोर है।

हालांकि अन्य लोग यह तर्क भी देते हैं कि यह योजनाओं को वैद्य कल्याणकारी उपायों के रूप में देखा जा सकता है जो गरीबों और हाथियों पर रहने वाले लोगों की आवश्यकता की पूर्ति करती है, सार्वजनिक वितरण प्रणाली रोजगार गारंटी योजना शिक्षा हेतु सहायता और स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय, इस खर्च से देश के समग्र विकास होता है इससे देश में उत्पादकता बढ़ती है और यह आर्थिक विकास के लिए भी जरूरी है, अर्थात गरीब लोगों तक मूलभूत सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित कराती है।

फ्रीबीज कल्याणकारी राज्य के लक्ष्य हेतु आवश्यक है क्योंकि भारतीय सरकार के नीति निर्माताओं द्वारा आर्थिक विकास हेतु ट्रिकल डाउन मॉडल अपनाया गया था इस मॉडल के तहत देश के विकास के लिए उन्नत और भारी उद्योगों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है इससे उन्नत उद्योगों के विकास से छोटे और पिछले उद्योगों को भी विकास होगा। परंतु इस मॉडल का एक नकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि इससे भारत में आर्थिक vसमानता बढ़ गई कुछ को तो फायदा अधिक व परंतु कुछ को बहुत कम लाभ पहुंचा। इसे शहरी क्षेत्रों में रहने वाले गैर कृषि अभिजात्य वर्ग को सबसे अधिक लाभ पहुंचा।

फ्रीबीज कल्चर के चलते सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने एक जनहित याचिका में आदेश देते हुए कहा कि यह देश की वित्तीय स्थिति को खराब कर सकता है अर्थात अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह चुनावी प्रक्रिया को भी प्रभावित होता है। तथा इस तरीके के वादे दो राजनीतिक दलों को समान मुकाबला नहीं होने देते जिसके कारण देश का लोकतंत्र प्रभावित होता है, तथा ,sls विवादों के आधार पर कार्यवाही के लिए कोई कानून नहीं हैA जिसके लिए इलेक्शन कमीशन से जवाब मांगे हैं परंतु इलेक्शन कमीशन इस मुद्दे पर मोन रहा है पिछले कुछ वर्षों में हम इसका उदाहरण भी देख सकते हैं।

इस लेख में, हम पांच भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ की चुनावी नीतियों की तुलना करेंगे। उन कल्याणकारी योजनाओं की जांच करेंगे। जो इन सरकारों द्वारा चुनाव से पहले और बाद में घोषित की गई हैं और यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या इन योजनाओं को वास्तविक कल्याणकारी उपाय के लिए लागू किया गया था, केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए।


उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार का लोकलुभावन कल्याणकारी योजना की घोषणा करने का एक लंबा इतिहास रहा है 2017 के राज्य चुनावों से पहले भाजपा सरकार ने कई योजनाओं की घोषणा की जिसमें कॉलेज की छात्राओं को मुफ्त लैपटॉप, लड़कियों को मुफ्त साइकिल और गरीब परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर का वितरण शामिल था।


2017 के चुनावों के पश्चात भी बीजेपी सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा जारी रखी। 2019 में सरकार ने कॉलेज के छात्रों को मुफ्त स्मार्टफोन प्रदान करने की योजना की घोषणा की। इससे पूर्व अखिलेश सरकार ने भी ऐसी कई लोकलुभावन कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की थी। आंकड़ों की माने तो उत्तर प्रदेश में राज्य की जीडीपी का 40% कर्ज में जाता है।


वर्ष 2020- 21 में महाराष्ट्र सरकार ने कृषि ऋण माफी के लिए 45 से 51 हजार करोड रुपए खर्च किए थे।। इसके अलावा साल 20-21 में पंजाब सरकार ने यूरिया, बिजली सब्सिडी प्रदान की थी जिसके कारण पंजाब का ऋण जीडीपी अनुपात 53.3% तक पहुंचा था। अगर सरकार इस धन का प्रयोग इन संसाधनों का प्रयोग इंफ्रास्ट्रक्चर तथा निवेश में कर सकती है कृषि क्षेत्र में निवेश के लिए प्रयोग में ला सकती है। जो किसान की आय को दोगुना करने की ओर कदम उठा सकता है। यही कारण है कि आज भारत में PSU'S की मौजूदा स्थिति नुकसान में है।

राजस्थान में भी हाल के वर्षों में ऐसी कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की गई है जैसे 2018 के राज्य चुनावों में 2020 के चुनावों में मुफ्त वस्तु प्रदान करने की कई लोकलुभावन योजनाएं प्रस्तुत की गई थीं। जिसका उदाहरण है राजस्थान में पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करना जिसमें राजस्थान की संपूर्ण जनसंख्या का केवल 6% को ही लाभ मिलेगा।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने 2015 के राज्य चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी सरकार ने सभी घरों में मुफ्त पानी और बिजली उपलब्ध कराने की एक योजना की घोषणा की तथा 2019 में सरकार ने दिल्ली के सभी निवासियों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने की योजना की घोषणा की। आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा जल सब्सिडी के तहत प्रति माह 20,000 लीटर तक पानी का प्रयोग करने वाले परिवारों को कुछ भी भुगतान नहीं करना पड़ेगा। इस सब्सिडी के पहले वर्ष में ही पानी के बिलों से सरकार का संग्रह 176करोड़ रु बढ़ गया था। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार दिल्ली को प्रतिदिन 3,324 मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता होती है जबकि से प्रतिदिन 2,034 मिलीलीटर पानी मिलता है जबकि राजधानी में औसत पानी की खपत 240 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन अनुमानित है। इस तरह की मुफ्त अफरीदी योजनाओं के कारण हर व्यक्ति का अर्थात अधिकतम व्यक्ति का लाभ नहीं हो रहा है अर्थात पर्यावरण को हानि पहुंच रही है जिससे भूजल को नुकसान हो रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था को भी।

छत्तीसगढ़ बिलासपुर शहर की एक रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अगर आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़ में सत्ता स्थापित करती है तो वह दिल्ली की तर्ज पर छह सेवाएं प्रदान करेगी । जिसमें ज्यादातर सेवाएं मुफ्त होंगी। केजरीवाल ने कहा कि अगर हम सत्ता में आते हैं तो हम मुफ्त बिजली, दिल्ली की तरह मुक्त शानदार स्कूल देंगे जहां अमीर और गरीब के बच्चे एक साथ पढ़ते हैं , मुफ्त अस्पताल और क्लीनिक, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, वरिष्ठ नागरिकों के लिए धार्मिक स्थानों की मुफ्त पवित्र यात्रा और रोजगार देंगे।

आलोचकों का तर्क है कि ये योजनाएं वोट बैंक मुफ्तखोरी से ज्यादा कुछ नहीं है उनका कहना gS, की योजनाएं अक्सर खराब तरीके से क्रियान्वित की जाती हैं और लाभ इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता है तथा यह राज्य के वित्त की बर्बादी से अधिक और कुछ नहीं है। वहीं दिल्ली सरकार के कल्याणकारी योजनाओं के समर्थकों का तर्क है कि यह गरीबों और हशिए पर रहने वाले लोगों को सामान्य सहायता प्रदान करने की योजनाएं हैं वे बताते हैं कि योजनाएं मतदाताओं के बीच लोकप्रिय रही है और उन्होंने कई लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद की है उनका यह तर्क भी है कि यह योजनाएं राज्य के भविष्य के लिए एक अच्छा निवेश है।

कर्नाटक में कांग्रेस के पास गारंटी जिसमें मुफ्त मातृत्व अवकाश, शिक्षा सहायता और मुफ्त बिजली शामिल है। आलोचकों का आलोचकों का तर्क है कि इन वोट खरीद 'मुक्त सुविधाओं' से राज्य का कर्ज बढ़ जाएगा और ईमानदार लोगों पर बोझ पड़ेगा हालांकि कर्नाटक एक समृद्ध राज्य है जिसकी प्रति व्यक्ति आय ₹22000 है जो इस भारत का चौथा सबसे अमीर राज्य बनता जा रहा है।

बजट में घरेलू उपभोक्ताओं पर 100 यूनिट तक और किसानों को दो हजार यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की घोषणा करने के बाद सीएम गहलोत ने 2019 तक के बिजली बिलों पर फिक्स्ड चार्ज फ्यूल चार्ज और अन्य शुल्क करने की घोषणा की यह वित्तीय लागत अनुमानों से कहीं अधिक है तथा इस कर्ज को चुकाने के लिए सरकार पर डिस्काउंट के लगभग 3000 करोड़ रुपए के घाटे को अपने ऊपर ले रहा है जिससे उसका राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है इसके अलावा पिछले वर्ष कोयला संकट और एक्सचेंज से महंगी बिजली पर अत्यधिक निर्भरता ने इस पर और असर डाला है।

15 वे वित्त आयोग एन के सिंह ने इसे "क्विक पासपोर्ट टू फिस्कल डिजास्टर" कहां है। ऐसी लोकलुभावन योजनाओं के वित्तीय नुकसान ते हैं साथ ही कई गैर वित्तीय नुकसान भी हैं। जैसे बिना जरूरत के कर्ज लेने की प्रवृत्ति मैं वृद्धि होना बैंकिंग व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव अर्थात जिस व्यक्ति को कर्ज माफ़ी की जरूरत नहीं है उसका भी कर्ज माफ होना। लोकलुभावन परियोजनाओं के कारण सरकार के राजस्व पर प्रभाव पड़ता है अर्थात यह विकास और अवसंरचनात्मक योजनाओं के निवेश में सरकार की क्षमता में कमी करता है। इन मुफ्त सुविधाओं के कारण राज्य सरकार को कर भी प्राप्त नहीं होता है।

स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के विरुद्ध

स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के भी विरुद्ध है क्योंकि नेताओं द्वारा जनता से तर्क वादे किए जाते हैं जिससे राज्य में अनैतिकता का जन्म होता है मतदाताओं को रिश्वत दी जाती है। जो भारतीय लोकतंत्र की भावनाओं को कमजोर करता है, छात्र नेता ने इसे एक राजनीतिक उपकरण के रूप में प्रयोग करते हैं। इस प्रकार की सुविधा के कारण संसाधनों की बर्बादी भी होती हैं जो पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती है जिसका उदाहरण हम पंजाब में देख सकते हैं।

सार्वजनिक वितरण और मुक्त सुविधाओं के बीच एक अंतर है दोनों शब्दों को एक साथ नहीं देखा जा सकता जैसे मनरेगा खाद्य सुरक्षा अधिनियम, मिड डे मील ऐसी योजना है जो कल्याणकारी योजनाओं के अंतर्गत आते हैं यह मतदाताओं को लुभाने की योजनाओं से संबंधित नहीं है अर्थात यह जरूरी है कि इन दोनों के मध्य एक स्पष्ट परिभाषा प्रस्तुत की जाए।


"किसी को खाना देकर, केवल कुछ ही दिन खिलाया जा सकता, मगर उसे खाना बनाना सिखाकर, जीवन पर खाना खिलाया जा सकता है।"

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